Dated : 5 February 2018
साल 2018 के लिए त्रिपुरा बीजेपी के एजेंडे में सबसे ऊपर है…. त्रिपुरा में पिछले 24 साल से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी यानी सीपीआईएम की सरकार है… पिछले चुनाव में सीपीआईएम और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई थी जिसमें कांग्रेस के हाथ 60 में से सिर्फ़ दस सीटें लगी थीं… बाकी की पचास सीटों पर सीपीआईएम ने जीत हासिल की थी… कांग्रेस के 7 विधायक बाद में तृणमूल कांग्रेस में और फिर बीजेपी में शामिल हो गये…. इस तरह बीजेपी की एंट्री त्रिपुरा विधानसभा में हो तो गई… मगर उसने अभी तक राज्य में एक भी सीट पर चुनाव नहीं जीता है… ये विधानस भा चुनाव उसकी असली परीक्षा हैं… राज्य के मुख्यमंत्री माणिक सरकार के नेतृत्व वाली सीपीआईएम सरकार के त्रिपुरा में आतंकवाद को जड़ से उखाड़ने और Armed Forces Special Powers Act को हटाने से त्रिपुरा की जनता काफी खुश है और पार्टी को इसका चुनाव में बेहद फ़ायदा मिल सकता है.... 24 साल एंटी इंकम्बेंसी होने बावजूद भी सीपीआईएम को हराना कांग्रेस और बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर होगा…. मेघालय की जो कांग्रेस का गड माना जाता है ...मेघालय में पिछले 9 साल से कांग्रेस की सरकार है....कांग्रेस के सामने किला बचाने की चुनौती है.... कांग्रेस के लिए मेघालय में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है... मुकुल संगमा से नाराज़ चल रहे कांग्रेस के 5 विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है.....और ये सभी विधायक नेशनल पीपल्स पार्टी में शामिल हो गये… इन 5 के आलावा 3 और विधायकों ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है....गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी के अच्छे प्रदर्शन के बाद और राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस की शानदार जीत से पार्टी का मनोबल काफी बड़ गया है...कांग्रेस फ़िलहाल वर्तमान मुख्यमंत्री मुकुल संगमा की अगुवाई में ही चुनाव लड़ रही है… और बीजेपी के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जो मुकुल संगमा को टक्कर दे सके... जिसका खामियाज़ा बीजेपी को भुगतना पड़ सकता है..
Nice blog
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