Dated : 23 January 2018
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे......वे नेता जी के नाम से भी जाने जाते हैं.....द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था....तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा का नारा भी उनका था जो उस समय अत्यधिक प्रचलन में आय ... सुभाष चन्द्र बोस के 121 वे जन्मदिन पर एक नज़र उनके राजनतिक सफर पर .... भारतीय प्रशासनिक सेवा (इण्डियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता-पिता ने बोस को इंग्लैंड के केंब्रिज विश्वविद्यालय भेज दिया.... अँग्रेज़ी शासन काल में भारतीयों के लिए सिविल सर्विस में जाना बहुत कठिन था किंतु उन्होंने सिविल सर्विस की परीक्षा में चौथा स्थान प्राप्त किया....1921 में भारत में बढ़ती राजनीतिक गतिविधियों का समाचार पाकर बोस ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली और भारत लौट आए.... सिविल सर्विस छोड़ने के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए.... सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सहमत नहीं थे.... महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व करते थे, वहीं सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय थे....सबसे पहले गाँधीजी को राष्ट्रपिता कह कर नेताजी ने ही संबोधित किया था....1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया.... यह नीति गाँधीवादी आर्थिक विचारों के अनुकूल नहीं थी.... 1939 में बोस पुनः अध्यक्ष चुने गये उन्होंने महात्मा गाँधी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतरमाइआह को हराया था जिसे गांधी ने इसे अपनी हार के रुप में लिया... उनके अध्यक्ष चुने जाने पर गांधी जी ने कहा कि बोस की जीत मेरी हार है और ऐसा लगने लगा कि वह कांग्रेस वर्किंग कमिटी से त्यागपत्र दे देंगे....गाँधी जी के लगातार विरोध को देखते हुए उन्होंने स्वयं कांग्रेस छोड़ दी....उन दिनों महात्मा गाँधी के बाद सुभाष चंद्र बोस सबसे प्रसिद्ध नेता थे.....उस वक़्त पंडित जवाहरलाल नेहरू महतमा गाँधी के काफी गरीबी माने जाते थे...जवाहरलाल और सुभाष चन्द्र बोस के भी विचार अलग अलग थे.... विचार अलग अलग होने के बाद भी दोनों एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे... सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया.... वह 1933 से 36 तक यूरोप में रहे.... यूरोप में यह दौर था हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद का....नाजीवाद और फासीवाद का निशाना इंग्लैंड था, जिसने पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर एकतरफा समझौते थोपे थे.... वे उसका बदला इंग्लैंड से लेना चाहते थे.... भारत पर भी अँग्रेज़ों का कब्जा था और इंग्लैंड के खिलाफ लड़ाई में नेताजी को हिटलर और मुसोलिनी में भविष्य का मित्र दिखाई पड़ रहा था.... उनका मानना था कि स्वतंत्रता हासिल करने के लिए राजनीतिक गतिविधियों के साथ-साथ कूटनीतिक और सैन्य सहयोग की भी जरूरत पड़ती है....नेताजी के नाम से प्रसिद्ध सुभाष चन्द्र ने सशक्त क्रान्ति द्वारा भारत को स्वतंत्र कराने के उद्देश्य से 21 अक्टूबर, 1943 को 'आज़ाद हिन्द सरकार' की स्थापना की.... द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था..... नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुँचे.... यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा" दिया....
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